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विष-ग्रहण l
Image credit : An image created by Bing AI based on my prompts.
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खोजने चले थे "अमृत" ज़ब देव-आसुर

करके मंथन "क्षिर-सागर " का l

पर निकला विष "हलाहल",

प्रथम हीं क्षण,

जिसमे थी परस्पर-घृणा,

मिश्रित-द्वेष व नफ़रत,

संयुक्त देव-आसुर की l

था वह विष इतना भयावह…

…जिससे हुआ "सफ़ेद-स्मृद्ध" सा क्षिर-सागर,

स्याही सा मैला

एक हीं क्षण l

फैलने लगा "अंधकार" समग्र श्रुस्टि में l

देख "प्रारम्भ" श्रुस्टि के अंत का…

…हुए भयभीत वो सारे देवता

जिन्हें था अभिमान,

अपने प्रबल पर, अपने देवत्व पर l

हुए भयभीत वो सारे दानव, दैत्य, और असुर भी,

जो थे ख़ौफ़ के प्रतीक...