...

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" कुछ बात बने "
सिर्फ़ मेरे यूं लिखने से क्या होगा...
जब तुम पढ़ो तो कुछ बात बने...!
मेरा यूंही ख्यालों में तुम्हें, सोचते रहने से क्या होगा...
तुम को हक़ीक़त में एहसास हो तो कुछ बात बने...!
मेरा यूं ही तुमको एकतरफा चाहने से भला क्या होगा...
जब तुम्हें भी इज़हार-ए-इश्क़ हो तो कुछ बात बनें...!
सिर्फ़ मैं बोलूं तुम चुप रहो इससे क्या होगा...
ये कहने सुनने का किस्सा दो-तरफा चलें तो कुछ बात बने...!
रजत! यूं ही जज़्बातों को ज़ाहिर करने से क्या होगा...
जब तेरे कहें अल्फ़ाज़ वो भी महसूस करें तो कुछ बात बने...!
© Rajat