...

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डर 🥺🥺🥺🥺🥺🥺🥺
एक जिंदगी ऐसी थी जिसको सिवाए डर के आलावा कुछ नही मिला

जिस को अपना समझा वो अपना न बन सका

जिसको खुदके पास रखना चाहा वो दूर होता चला गया

इंसानों को अपना समझा वो तो दुश्मन बन गया
जो दुश्मन था वो अपना बन कर चला गया

जिसपे जुबान थी वो तो जहर उगलते चले गए
जिसपे जुबान नहीं वो बीन बोले प्यार देते चले गए

जिते जी वो हमे प्यार ना दे सके मरने के बाद क्या देंगे

यहां बेजुबान आखरी सांस गिन रहा है सिर्फ मुझे आखरी बार देखने के लिए

कभी कभी आंधी के शुरू होते ही डर जाति थी क्या होगा
आज तो खुदकी जिंदगी के तूफान आने लगे उन आंधियों की क्या बात है फिर

कभी बारिश तेज हुई तो डर लगता था आज तो खुद की आंखों में समंदर भरा पड़ा है उससे ज्यादा क्या होगा

जिसको खोने से डरती थी धीरे धीरे वो डर हकीकत होता गया लोग मुझसे दूर होते चले गए

अब किस बात का डर

कोई मुसीबत आई तो हमेशा अकेला सोच अपने के पास भागी आज कोई अपना नहीं है चाह कर भी कोई अपना नहीं है

कभी कभी जो सोचो वो नही होता जो नही चाहते वो जरूर मिल जाता है

© Teri Meri baten