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प्रकृति के सवाल
ऐ मनुष्य,
तुम मेरे ही तो अंश हो,
फिर क्यों इतने विध्वंस हो?
राख़ या मिट्टी बन मेरे पास ही तो आना है,
फिर भी तेरा अहंकार क्यों नहीं जाता है?
पूरी तो की है मैंने तेरी हर जरूरत,
फिर क्यों खामोशी से देख रहा तू मेरी बर्बादी का सबब?
मैं तेरे समक्ष हूं साक्षात् खड़ी,
फिर क्यों है तुझे जरूरत पत्थर के भगवान की?
तुम मेरे ही तो अंश हो,
फिर क्यों इतने विध्वंस हो?
राख़ या मिट्टी बन मेरे पास ही तो आना है,
फिर भी तेरा अहंकार क्यों नहीं जाता है?
पूरी तो की है मैंने तेरी हर जरूरत,
फिर क्यों खामोशी से देख रहा तू मेरी बर्बादी का सबब?
मैं तेरे समक्ष हूं साक्षात् खड़ी,
फिर क्यों है तुझे जरूरत पत्थर के भगवान की?
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