...

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सिरफिरी
कल की तरह
ये शाम अंधेरी
छुपाती है राज़
न जाने कितने ये सिरफिरी
सबको लगती है ये बुरी
जैसे जानती हो उसे दुनिया सारि
अंगिनत राज़ों का है वो पिटारा
जैसे किसी ख़ज़ाने को हो उसने संभाला
कोई प्यार से बोलदे तो
हथेली पर जान रख देती थी वो
खुद को बदलना नही चाहती थी
पर सिरफिरी थी वो
कहाँ से आई कहाँ खो गई
ये खबर नही किसिको
अगर संभाल लेते जब जरूरत थी उसको
क्योकि आखिर मासूम सी सिरफिरी थी वो

© Dark Rose