सिरफिरी
कल की तरह
ये शाम अंधेरी
छुपाती है राज़
न जाने कितने ये सिरफिरी
सबको लगती है ये बुरी
जैसे जानती हो उसे दुनिया सारि
अंगिनत राज़ों का है वो पिटारा
जैसे...
ये शाम अंधेरी
छुपाती है राज़
न जाने कितने ये सिरफिरी
सबको लगती है ये बुरी
जैसे जानती हो उसे दुनिया सारि
अंगिनत राज़ों का है वो पिटारा
जैसे...