...

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वो अन्देरी रात थी
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी !
राक्षस थे वो इंसानों वाली ना कोई उनमे बात थी ना ही ओकात थी !
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
रोका बड़ा मेने मगर उनको तो जिस्म की पयास थी!
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
नोच डाला मेरे जिस्म को, ना उनकी कोई बहन थी और ना ही वो किसी माँ की औलाद थी !
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
रो रही थी मेरी ऑंखें पर मे तो तब इक ज़िंदा लाश थी, इंसानों वाली उनमे ना कोई बात थी ना ही औकात थी !
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
छोड़ दी ये दुनिया मेने मे इंसान थी मुझमें ना कोई राक्षसों जैसी बात थी !
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
क्युकि मेरी और मेरे परिवार की इज़्ज़त की बात थी !
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
मार डालो इन राक्षसों को अब यही सबके मन की बात थी !
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!
हा चिलाई थी मे पर वो अन्देरी रात थी, ना बंदा था ना बन्दे की कोई जात थी!