गज़ल
जाने कैसे अब वो अपनी गली में चलता होगा ?
मैं तो मर गया, कांटे कौन चुनता होगा ?
उससे मिलने को लोग, एक उम्र चलकर आते हैं
रुख-ए-यार पे नूर यूँही नहीं ठहरता होगा
एक ज़रा सी ख्वाहिश की थी, बरसों पहले उसने
जाने कौन पागल है जो रातों में भटकता होगा ?
महज़ इत्तेफ़ाक़ से तो करामातें नहीं हुआ करतीं
कोई तो कलाकार है जो ऊपर नाटक रचता होगा
खोजने को निकल पड़ा हूँ, आतिश-ए-गुल में
कोई तो फूल होगा जो सच्चाई महकता होगा ?
आजकल जनाब अंजुमन में शरीक नहीं होते
वह तो है ही नहीं जो उनकी खातिर संवरता होगा
ज़माने से थके ज़हन को, माँ की गोद सहलाती है
अनाथों की रूह का बचपन, जाने कैसे बहलता होगा ?
रजाइयों की गर्माहट में सब...
मैं तो मर गया, कांटे कौन चुनता होगा ?
उससे मिलने को लोग, एक उम्र चलकर आते हैं
रुख-ए-यार पे नूर यूँही नहीं ठहरता होगा
एक ज़रा सी ख्वाहिश की थी, बरसों पहले उसने
जाने कौन पागल है जो रातों में भटकता होगा ?
महज़ इत्तेफ़ाक़ से तो करामातें नहीं हुआ करतीं
कोई तो कलाकार है जो ऊपर नाटक रचता होगा
खोजने को निकल पड़ा हूँ, आतिश-ए-गुल में
कोई तो फूल होगा जो सच्चाई महकता होगा ?
आजकल जनाब अंजुमन में शरीक नहीं होते
वह तो है ही नहीं जो उनकी खातिर संवरता होगा
ज़माने से थके ज़हन को, माँ की गोद सहलाती है
अनाथों की रूह का बचपन, जाने कैसे बहलता होगा ?
रजाइयों की गर्माहट में सब...