...

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मुद्रा नियमित शिक्षण
येन केन धन अर्जन हीं हो ,
जब शिक्षा का लक्ष्य प्रधान,

मुद्रा नियमित शिक्षण और,
द्रव्यार्जन को मिलता सम्मान।

ज्ञान की वृद्धि बोध की शुद्धि ,
का शिक्षक को ध्यान नहीं,

प्रज्ञा दोष के निस्तारण का ,
शिक्षक को अभिज्ञान नहीं।

तब उस विद्यालय में कोई ,
बोध का दर्पण क्या होगा?

विद्यार्थी व्यवसाय पिपासु ,
ज्ञान विवर्धन क्या होगा?

याद रहे गर देश में शिक्षण,
बना हुआ मजदूरी हो ,

शक्ति संचय अति आवश्यक,
शिक्षण गैर जरुरी हो।

तब राष्ट्र में बेहतर शिक्षक ,
अक्सर हीं हो जाते मौन ।

और राष्ट्र पर आती आपद ,
अभिवृद्धि हो जाती गौण।

अजय अमिताभ सुमन