...

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अस्सी रुपये का गमछा
"सुनो आओगे न"
हाँ आऊंगा,"
"सुनो न, तुम्हारा वो गमछा
जो लपेटते हो न
लेकर आना"
"अरे वो क्यूँ?"
"लाना बस ,
और न लाओ
तो आना भी नहीं
बस कह दिया मैंने"
"ठीक है बाबा लाऊँगा
तुम भी पूरी पागल हो"
"हाँ हूँ, क्या करोगे
पागलखाने भेज दोगे"
"उन्ह, तुमसे तो
बात करना ही बेकार है"
"तो मत करो, किसने कहा
कुट्टा जाओ, न बात करती"
*****
"सुनो, मेरे सामने बाल बनाओ न"
"अरे, बिल्कुल पागल हो क्या,
बना तो रखे हैं बाल मैंने"
"एक बार मेरे सामने बनाओ न"
"ठीक है पागल आदमी
लो बना रही,
मेरे बाल बहुत झड़ने लगे हैं आजकल
देखो न कंघी में कितने आ गए"

"सुनो न, ये अपने बाल मुझे दो न
जो झड़ गए"
"पागल समझा क्या,
मैं क्यों दूँ अपने बाल
तुमने बालों से मुझपर
जादू टोना कर दिया तो"
"अच्छा जी, ऐसा समझा मुझे???"
"और क्या, प्रेमिका के बाल कौन मांगता?"
"मैं मांगता, बोलो क्या करोगी?"

"उन्ह, रहने दो तुम
गमछा लाये?"
"हां , लाया"
"इधर दो मुझे।"
"लो बाबा, ये लो अस्सी रुपये का गमछा
जाने क्या मिलेगा तुमको इसमें??"

"सुनो, ये गमछा
तुम बहुत गर्मी में
मेहनत करते वक़्त लगाते हो न
इसमें तुम्हारी कर्मठता की खुशबू है
तुम्हारी मेहनत का पसीना लगा है
इसमें, मैं तुम्हारे इस
खून से बने पसीने को
हमेशा के लिए सहेज कर रखना चाहती हूं"

"पहले अपने, अभी जो बाल उतरे
वो दो मुझे"
"अरे......बालों में क्या रखा है???"
"सुनो, बायलॉजी ये कहती है
बाल सालों तक जिंदा रहते हैं
आदमी के मर जाने के बाद भी
मैं मरते दम तक,
इन्हें अपने पास रखूंगा
जिनमें तुम हमेशा जिंदा रहोगी।"
"सुनो हम दोनों पागल हैं ना...??"
"हां, बहुत बहुत बहुत पागल
पर आई लव दिस पागल"
"मी टू"

संजय कुमार"शिल्प"
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