थकान का पसीना
शीर्षक-थकान का पसीना
मोती सा मस्तक पर झिलमिल
लुढ़क रहा धीरे धीरे
झर झर झरता पग तल रज में ,
जाता चूम चरण तेरे,
इस मोती में भाग्य झलकता
तेरा जी हो लेकर चल,
तन मन का यह मणिक बूंद सा
छिपा हुआ तन में तेरे। 1
गिर मिट्टी में मिल जाता वह
खुद को अर्पित कर देता,
देश भक्ति सम्मान भाव से
गौरव तन में भर देता,
धरती धारण कर मोती को
धन्य समझती अपने को,
तन मन का यह शीतल जल ही
गंगा पावन कर देता |. 2
ह्रिदयालय को शीतल कर वह
करती है गहरी गुंजार,
मेहनत का फल मीठा होता
स्वाद सदा होता है खार,
परिश्रम-प्रेम-प्रमोद भाव में
निकल पड़ा अमृत की बूंद,
स्वेत स्वेद मिट्टी में मिलकर
मात्रृभूमि से करता प्यार |. 3
खर खर से खग नीड़ सजाता
लगा पसीने सीने से,
पूछों जरा शान्ति सुख खग से
श्रम कर जीवन जीने से,
देखा है मिटृटी में लसफस
बोते बीज किसानों को,
देखा श्रमिक थककर बैठे
भीगे हुए पसीने से |. 4
...
मोती सा मस्तक पर झिलमिल
लुढ़क रहा धीरे धीरे
झर झर झरता पग तल रज में ,
जाता चूम चरण तेरे,
इस मोती में भाग्य झलकता
तेरा जी हो लेकर चल,
तन मन का यह मणिक बूंद सा
छिपा हुआ तन में तेरे। 1
गिर मिट्टी में मिल जाता वह
खुद को अर्पित कर देता,
देश भक्ति सम्मान भाव से
गौरव तन में भर देता,
धरती धारण कर मोती को
धन्य समझती अपने को,
तन मन का यह शीतल जल ही
गंगा पावन कर देता |. 2
ह्रिदयालय को शीतल कर वह
करती है गहरी गुंजार,
मेहनत का फल मीठा होता
स्वाद सदा होता है खार,
परिश्रम-प्रेम-प्रमोद भाव में
निकल पड़ा अमृत की बूंद,
स्वेत स्वेद मिट्टी में मिलकर
मात्रृभूमि से करता प्यार |. 3
खर खर से खग नीड़ सजाता
लगा पसीने सीने से,
पूछों जरा शान्ति सुख खग से
श्रम कर जीवन जीने से,
देखा है मिटृटी में लसफस
बोते बीज किसानों को,
देखा श्रमिक थककर बैठे
भीगे हुए पसीने से |. 4
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