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तुम शेरनी हो
सुनो तुम शेरनी हो,शेरनी ही रहना।
अन्याय डर जाए,ऐसी दहाड़ भरना।
तुम्हारी गर्जना से कांप उठे आकाश भी,
पापी तुम्हारे सामनें थरथराए इतनी योग्य बनना।
दुर्गा का अवतार हो तुम, हो काली की उपासक,
मार्ग में आए दुष्टों से क्या डरना।
पापियों की भुजा उखाड़, मुंडो की माला तुम धारण करना।
थर-थर कांपे राक्षस दल,
तुम वो आदिशक्ति बनना।
सौम्य रहना तुम सभ्य लोगों के लिए,
पर पापियों के लिए तुम चंडी रूप धारण करना।
साहस का प्रतीक हो तुम,
दुनिया की सहानुभूति का पात्र क्यूॅं बनना।
लोमड़ी सी चतुराई और चील सी आँखें तेज रखना।
साहस, स्वाभिमान और दृढनिश्चय से तुम अपना श्रृंगार करना।
© kajal
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