...

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मैं, मय और तुम्हारी नाभि…
मैं, मय और तुम्हारी नाभि …

याद है तुम्हें
उस शाम
जब
मयकदे से निकलते वक्त
बरबस ही तुम
याद आ गई थीं
और
मैं चला आया तुम्हारे घर
उस मदहोश हालत में

तुमने
वो जो गुलाबी रंग वाला
टॉप पहन रखा था ना
हॉं वही
जो थोड़ा छोटा है
उसके उपर उठ जाने से
दिख रही थी तुम्हारी नाभि

और वो
हल्का बादामी रंग वाला
तिल भी
जो थोड़ा सा उपर की ओर है
तुम्हारी नाभि पर

सच कहूँ
उस रात में तुमसे
नज़रें ही
नहीं मिला पा रहा था

मिलाता भी कैसे
आख़िर मेरी नज़रें तो
खो जाना
चाहतीं थीं
तुम्हारी नाभि की
गहराइयों में

शायद
किसी दूसरी दुनिया की तलाश में
जहाँ पर
मिलती हो मदहोशी और मय एक साथ

सच कहूँ तो
तुम्हारी नाभि
किसी वीज़े की तरह ही है
जो देती है परमिट
किसी अनजाने से
सफ़र पर निकल जाने का

उस रात
तुम्हारी नाभि को निहारते हुए
मेरा और मदहोश हो जाना
कर गया
फिर से
मेरे उस सफ़र को अधूरा
हर बार की तरह

मैं, मय और तुम्हारी नाभि
इस बार भी
तरसते ही
रह गए
अधूरी हसरतों के साथ
हर बार की तरह…

#हसरतों_के_दाग
© theglassmates_quote