...

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Woman's Day Special
दुनियां की आश है वो
कब होती निराश है वो
घर में रौनक लाती,
पापा की परी कहलाती..!

हर हाल में उम्दा,
कंधे से कंधा मिलाती,,
खूब नाम कमाती,
हर खेल में अव्वल आती,

एक घड़ी अब ऐसी आती,
जब माई का अपना छोड़
वो दूसरे घर को जाती..!

वहा रिश्तों को समेटे,
उलझनों को सुलझाती..;
फिर ढेरो दुख झेल,
मां वो कहलाती..;

अब ममता की उबार में..
मुश्किलें बढ़ती जाती..;
कभी अश्क वो छुपाती
कभी मायूस हो जाती

फिर काजल अपना पोंछ,
नौकरी करने जाती ,,
कभी छुट्टी नहीं मिल पाती..,
कभी बॉस से डांट खाती..!

घर~बाहर के इस चक्कर में,
बस पहेली बन रह जाती..!
बस पहेली बन रह जाती.........
यू ही नहीं वो नारी कहलाती..!!!
यू ही नहीं वो......


© © नरेन्द्र