उसने कैसे सोचा
हर दिन जिसके लिए हम खुद को संवारने में बैठे वो है गुज़रते दिन के साथ हमें ही खुद से परे करने में लगा है ,
हम जो उसे खोने से डरते हैं वो खुद हमे किसी राह पर छोड़ के बैठा है,
चाहतों की इस लड़ाई में हम अपनी चाहत से हार बैठे हैं और वो जिसे हम इतना चाहते वो हमे किसी गैर के साथ ख्वाबों को सजाने का इल्ज़ाम लगा बैठा...
हम जो उसे खोने से डरते हैं वो खुद हमे किसी राह पर छोड़ के बैठा है,
चाहतों की इस लड़ाई में हम अपनी चाहत से हार बैठे हैं और वो जिसे हम इतना चाहते वो हमे किसी गैर के साथ ख्वाबों को सजाने का इल्ज़ाम लगा बैठा...