वो वाली बात कहाँ
वो वाली बात कहाँ
सरपट भागती ज़िन्दगी में,
बचपने के वो आराम कहाँ ।
शहरों की आपाधापी में,
गाँवो जैसी सुबह और शाम कहाँ ।
अनेको व्यंजनों से सजी थाली में ,
मइया के रोटी वाली मिठास कहाँ।
साथ देने को तो बहुतेरे हैं मगर
कदम कदम पर ठोकरों से संभाले,
पिताजी वाले हाथ कहाँ।
पल में टूटते पल में जुड़ते...
सरपट भागती ज़िन्दगी में,
बचपने के वो आराम कहाँ ।
शहरों की आपाधापी में,
गाँवो जैसी सुबह और शाम कहाँ ।
अनेको व्यंजनों से सजी थाली में ,
मइया के रोटी वाली मिठास कहाँ।
साथ देने को तो बहुतेरे हैं मगर
कदम कदम पर ठोकरों से संभाले,
पिताजी वाले हाथ कहाँ।
पल में टूटते पल में जुड़ते...