बेइंतहा चाहती हूं....!!
दिल निहाद एक बेचैनी- सी छा जाती है मुझपर, जब देखता है तुझे यू कोई नजर उठाकर....!!
कैसी जुस्तजू में हूं मैं तुझे पाने के लिए , तुझे अपना बना लू क्या ? मैं सबसे चुराकर ....!!
कैसे धुंध में बह रही है मेरी बेइंतेहा मोहब्बत....,
कई महफूज़ रख दूं तुम्हें , इस गैहान की चश्म-ए - बद से छिपाकर.....!!
कैसी अजीब- सी वक्त की बेदर्दी है ,जितनी दफा तुम्हें देखूं, दिल पर एक गश-सी छा जाती है....,
तेरे लिए मेरी यह बढ़ती मोहब्बत,...