...

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पहचान
कौन हो तुम,
पहचान क्या है तुम्हारी,
जिस नाम पर इतना इतराते हो,
ये तो पसंद भी नहीं है तुम्हारी,
तो कौन हो तुम,
और पहचान क्या है तुम्हारी।

किस बात का गुमान है,
किया कौन सा ऐसा काम है,
अगर बस दो पैसो का अभिमान है,
तो फिर तैमूरलंग भी महान है,
तो कौन हो तुम,
और क्या यही तुम्हारी पहचान है।

क्या सुना कभी गांडीव और विजय-धनुष की टंकार है,
महाभारत के रण में करती भय का संचार है,
अर्जुन और कर्ण के कौशल का प्रमाण है,
क्योंकि ये अपने धारण करने वाले की पहचान है,
क्या ऐसा कोई तेज़ भीतर उदीयमान है,
क्योंकि यही तुम्हारी पहचान है।

© रवि रॉय