...

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में ही क्यों?
पल रहा,उम्र बढ़ते चले,जीने वाला मज़ा,कहा मुझे नसीब है
कहते अक्सर क्योंकि,नादान वो क्या जाने? दुनिया चीज़ है
हक से खर्च की होती जरूरत,कमाना कहा? हमारा काम है
जिसे हासिल करने में बीते कई पुत,संबोधित सपूत नाम है

पोषण की चादर से निकले,क्या क्या! दिखता ख्वाब में?
कितनी सोच के बराबर होती दुनिया,अंत देता जवाब में
जमा करो,कुछ नया करो,कल तो छीन - चपात ज्यादा है
मैं करूंगा में,ना होगी तसल्ली,मैंने किया है,में फायदा है

बाल नींद से जागे,आक्षि सहलाते,जग को शीघ्र क्या जाने?
जो बाल समझ,कल बक्षती,वो भी सता रही,अब पहचाने
समय के बाद क्या होगा?समय के पहले भी तो निर्भर है
कोशिश करो ख़ुद का हो,मिलते तो बहुत से भाडे के घर है

कब तक चलते रहना,दूरी कितनी है?जवाब कहीं नहीं है
जब तक हो,दत्ते रहो,आज करे,कल भरे,जानो यही सही है
बातों को छोड़ो,असलियत बताओ,जारी खाली खाकी है
कितने दिन बनाए,हित में,कितने बेकार हुए,जवाब बाकी है
ADITYA PANDEY©