...

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मैं रोया हूँ करती
छुपा कर के आँखें मैं रोया हूँ करती
गमे दिल किसी से नहीं हूँ मैं कहती

बिताये न बीते सताती है रैना
नज़र खोल अपनी मैं रहती हूँ तकती 

खिले फूल कोई न, सूखा चमन है 
ये जीवन की धरती बनी आज परती

नयन नीर मेरे,है बदली गमों की 
बरस के जमीं पे घुला क्यूँ न करती

नहीं कीमिया दर्द का कोई मेरे 
भला कैसे जीती अगर मैं न मरती

जितेन्द्र नाथ श्रीवास्तव "जीत "
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