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पुष्प का भाग्य
शीर्षक :- पुष्प का भाग्य

ओ मंदिर के सुमन,क्या भाग्य पाया हैं
तेरी इस सुगन्ध ने पत्थर को ईश बनाया हैं ||

हजारों शीश झुकते हैं जिस के सामने
उस शीश पर सजने का भाग्य तुमने पाया हैं ||

जलन होती हैं तेरे भाग्य से,मैं भी मिट्टी तूँ भी मिट्टी
फिर भी ब्रह्मा ने तुझे ही अपना आसन बनाया हैं ||

क्षणभंगुर सा हैं जीवन तेरा,आस्था का प्रतीक हो
फिर भी हर ईश्वर ने तुमको अपने शीश पर सजाया हैं ||
© M.S.Suthar