...

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!...कार ए जहां...!
कोई चारागर जो मेरी ख़लवत में नहीं
मेरी तन्हाइयां ही मेरी चारागर है बनी

तुम हंसते हो देख कर मेरी बर्बादी को
क्या तुम्हे किसी से मोहब्बत ही नहीं

सफ़ीना डूबने को है मेरी लाचारी का
मल्लाह को समुद्र की खबर ही नहीं

रोज़ ए मेहशर खुल जाएंगे मेरे अमाल
गर आप ने ना थामा तो मैं कुछ भी नहीं

तेरे नाम से बदनाम हूं, तो हूं
इस्तेहार दीवारों पे लगते है यूहीं नहीं

कौन मुझको देगा नेकिया...