...

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पिता

**पिता**

पिता ! ये शब्द ही कितना महान है ,
हमारी पुरी दुनिया और जहान है ,
खुशीयों एक की बड़ी सी दुकान है,
माथे पे उनके ना कोइ सिकन्ज
ना चेहरे पे थकान है ,
वो सुरज की पहली किरण है,
जो रोशन कर दे हमारी जहाँ हैं
चमकती हुइ ओस की बुन्दे हैं,
जो चमकाते हमारी जिंदगानी हैं,
पहली किताब और पुरी पाठ शाला हैं ,
लगते तो चट्टान जैसे पर ,
प्यार का गहरा समुंदर है ,
वो बुलंद हौसला और ढाल हैं ,
अपने आप में बेमिसाल हैं
शब्दों में बया कर सकें
ऐसी उनकी काया नहीं
वो भगवान हैं हमारे,
ये हमने उन्हें बताया नहीं ,
वो हैं इसीलिये आज हम हम हैं ,
पीता जो हमारे मान, अभिमान,
सम्मान और पहचान हैं
हमें जीवन देने वाले पिता को
सत सत प्रणाम है.. !!

(दिल की कलम)








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