आह्वान
Iआह्वान वक्त का ऐसा हुआ असर अमराई भी बौराई नहीं। तन मन से सींची थी बगिया कली मुसकाई नहीं। रोज सिमटती जा रही चादर चाहतों में कमी नहीं। सिकुड़े सिकुड़े हसरतों को अब रहा जाता नहीं। उम्मीद का दीया जलाए रखना जग का दस्तूर है। जिन्दगी से लड़ते रहो जब तक बाकी नूर है। ...