मैं शिक्षक हूं।
शिक्षक बनने की इच्छा तब हुई थी .....
जब एक बुज़ुर्ग को एक छोटी सी शिक्षिका के पैर छूते देखा था।
ये सम्मान था, जिसमें गोविंद ने भी गुरु को खुद से आगे रखा था।
मुझे गर्व था बहुत कि मैं शिक्षक हूं जो भविष्य निर्माता है।
ऊपरवाला कोई भी हो पर मेरा ज्ञान इस धरा पर भाग्य विधाता है।
समय बीता और समाज में मेरा सम्मान न जाने क्यों कम होता गया?
मैंने बैठाया सबको बड़े बड़े ओहदों पर, पर मेरा ओहदा खत्म होता गया।
किसी ने कहा मैं मोमबत्ती हूं जो जल जल कर दूसरों को रोशनी देता है।
किसी ने कहा सड़क हूं जो लोगों को मंज़िल तक पहुंचा वहीं खड़ा रहता।
जो भी कहा पर मैं कम वेतन, missed punch और छुट्टियों में उलझ गया।
चाणक्य ने क्यों चन्द्रगुप्त का निर्माण किया मैं आज समझ गया।
आपको पता है मुझे गर्मी में लू नहीं लगती और ना ही सर्दियां डराती है।
वर्षा ऋतु तो इतनी मेहरबान है कि मुझे पूरा waterproof बनाती है।
मुझे बीमार होने का हक़ नहीं कोरोना जैसी बीमारी भी मेरा क्या बिगाड़ेगी?
मैंने बसाया जिस दुनिया को वो दुनिया अब lockdown में मेरा घर उजाड़ेगी।
मैं भी सम्मान के साथ इंसानों की तरह दो वक्त की रोटी खाना चाहता था।
मैं आठ घंटे का कर्मचारी नहीं चौबीस घंटे का कार्यकर्ता बनना चाहता था।
पर आज समाज ने मेरे शिक्षक होने के गर्व को नीचा दिखा दिया।
मैंने जब कहा कि मैं भी इंसान हूं तो मुझे कटघरे तक पहुंचा दिया।
मैं फिर भी चुप हूं क्योंकि मुझे, सिर्फ मुझे इस समाज में बोलने का हक़ नहीं।
या फिर इसलिए क्योंकि मुझे सचमुच गर्व था कि मैं एक शिक्षक हूं और कुछ नहीं।
by Santoshi
जब एक बुज़ुर्ग को एक छोटी सी शिक्षिका के पैर छूते देखा था।
ये सम्मान था, जिसमें गोविंद ने भी गुरु को खुद से आगे रखा था।
मुझे गर्व था बहुत कि मैं शिक्षक हूं जो भविष्य निर्माता है।
ऊपरवाला कोई भी हो पर मेरा ज्ञान इस धरा पर भाग्य विधाता है।
समय बीता और समाज में मेरा सम्मान न जाने क्यों कम होता गया?
मैंने बैठाया सबको बड़े बड़े ओहदों पर, पर मेरा ओहदा खत्म होता गया।
किसी ने कहा मैं मोमबत्ती हूं जो जल जल कर दूसरों को रोशनी देता है।
किसी ने कहा सड़क हूं जो लोगों को मंज़िल तक पहुंचा वहीं खड़ा रहता।
जो भी कहा पर मैं कम वेतन, missed punch और छुट्टियों में उलझ गया।
चाणक्य ने क्यों चन्द्रगुप्त का निर्माण किया मैं आज समझ गया।
आपको पता है मुझे गर्मी में लू नहीं लगती और ना ही सर्दियां डराती है।
वर्षा ऋतु तो इतनी मेहरबान है कि मुझे पूरा waterproof बनाती है।
मुझे बीमार होने का हक़ नहीं कोरोना जैसी बीमारी भी मेरा क्या बिगाड़ेगी?
मैंने बसाया जिस दुनिया को वो दुनिया अब lockdown में मेरा घर उजाड़ेगी।
मैं भी सम्मान के साथ इंसानों की तरह दो वक्त की रोटी खाना चाहता था।
मैं आठ घंटे का कर्मचारी नहीं चौबीस घंटे का कार्यकर्ता बनना चाहता था।
पर आज समाज ने मेरे शिक्षक होने के गर्व को नीचा दिखा दिया।
मैंने जब कहा कि मैं भी इंसान हूं तो मुझे कटघरे तक पहुंचा दिया।
मैं फिर भी चुप हूं क्योंकि मुझे, सिर्फ मुझे इस समाज में बोलने का हक़ नहीं।
या फिर इसलिए क्योंकि मुझे सचमुच गर्व था कि मैं एक शिक्षक हूं और कुछ नहीं।
by Santoshi
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