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मैं शिक्षक हूं।
शिक्षक बनने की इच्छा तब हुई थी .....

जब एक बुज़ुर्ग को एक छोटी सी शिक्षिका के पैर छूते देखा था।
ये सम्मान था, जिसमें गोविंद ने भी गुरु को खुद से आगे रखा था।

मुझे गर्व था बहुत कि मैं शिक्षक हूं जो भविष्य निर्माता है।
ऊपरवाला कोई भी हो पर मेरा ज्ञान इस धरा पर भाग्य विधाता है।

समय बीता और समाज में मेरा सम्मान न जाने क्यों कम होता गया?
मैंने बैठाया सबको बड़े बड़े ओहदों पर, पर मेरा ओहदा खत्म होता गया।

किसी ने कहा मैं मोमबत्ती हूं जो जल जल कर दूसरों को रोशनी देता है।
किसी ने कहा सड़क हूं जो लोगों को मंज़िल तक पहुंचा वहीं खड़ा रहता।
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