...

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तुम गीत मिलन के गाया करो
आँखों से सपने चुनकर
तुम गीत मिलन के गाया करो।

तुम ज्योति प्रभा तुम मृगनैनी
अनुपम छटा तुम्हारी है।
शान्त सरोवर में जैसे
लहरों सी घटा तुम्हारी है।
सुंदरता को सुंदर करती
चंद्रोदय की सुंदरता ललाम।
गीतों में मादकता की
जैसे पढ़ता हो कोई कलाम।
मैं तुम्हें देख कर गीत गढू
तुम मेरे गीतों में खो जाया करो।
आँखों से सपने चुनकर
तुम गीत मिलन के गाया करो।

तुम श्वेत क्रांति की श्वेत परी
निर्मल सी हँसी तुम्हारी है।
तनमन को शीतल कर जाए
ऐसी कशिश तुम्हारी है।
रहूँ निरखता दिन-रात तुम्हें
सुधि कहाँ हमे हमारी है।
आजाद परिंदों के जैसे
चलना और ठहर जाना
जैसे कुमुदिनी खिल जाए
ऐसे ही मधुर तुम्हारा मुस्काना।
ये प्रेम की रीत सुनो सजनी
तुम देख मुझे मुस्कुराया करो।
आँखों से सपने चुनकर
तुम गीत मिलन के गाया करो।

नीलाभ गगन से उतरी तुम
वर्षा ऋतु के बूँदों जैसी।
तन मन को शीतल कर जाए
श्रावण ऋतु के कजरी जैसी।
भ्रमर कोई इंतजार करे
जैसे कली के खिल जाने का।
स्वप्न सजाये नववधु कोई
आशातीत है प्रिय के मिल जाने का।
ऐसी आतुरता के साथ तुम्हारा
करता हूँ इंतजार प्रिये।
तुम भी मिलने आ जाओ
फ़ूले फले हमारा प्यार प्रिये।
ये दिन कहीं गुजर ना जाएँ
इतना भी ना सरमाया करो।
आँखों से सपने चुनकर
तुम गीत मिलन के गाया करो।
© राकेश कुमार सिंह

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