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चैत्र नव वर्ष
किसलय करते कर उठा उठा कर,
गुंचे करती मौन ही स्वागत।
पुष्प पंखुड़ी फैलाकर करते,
निशा दौड़कर करती जाग्रत ।
पक्षी कलरव कर गीत सुनाते,
सूरज की गर्मी समताप हो गई।
नदियों ने शीतलता छोड़ी,
फूलों पर भौंरझुंड मंडराई।
आम बौरों से लद लद बिहसे,
गेहूं की बाली बड़ी हो गई।
कृषक देखकर हुए प्रसन्न,
तीसी तनकर के खड़ी हो गई।
ऐसा सब क्यों होता सोचो,
नव वर्ष के आने की ये आहट।
स्वागत में सब खड़े हो गए,
खत्म हो गई सबकी घबराहट।
© DRGNRAI
गुंचे करती मौन ही स्वागत।
पुष्प पंखुड़ी फैलाकर करते,
निशा दौड़कर करती जाग्रत ।
पक्षी कलरव कर गीत सुनाते,
सूरज की गर्मी समताप हो गई।
नदियों ने शीतलता छोड़ी,
फूलों पर भौंरझुंड मंडराई।
आम बौरों से लद लद बिहसे,
गेहूं की बाली बड़ी हो गई।
कृषक देखकर हुए प्रसन्न,
तीसी तनकर के खड़ी हो गई।
ऐसा सब क्यों होता सोचो,
नव वर्ष के आने की ये आहट।
स्वागत में सब खड़े हो गए,
खत्म हो गई सबकी घबराहट।
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