No Title
यूँही तो गुज़र गया ऐ वक्त एहतियात किसे दू ।
ना शौक ना ऐतबार बता ये जरूरत किसे दूं ।
संजिदा ही खड़ा रहा हु मै आईने के सामने ।
गफलत मे ही मुस्कुराया ये झूठी शान किसे दूं ।
मेने भी देखा है लोगो को भीड मे अक्सर।
मय अब लगे बद्दसर ये झूठी शराफत किसे दूं।
मिल्कियत, शान ए शोकत सब फानी हे फानी ये ।
ये झूठी ताज पोशी के झूठे खयालात किसे दूं।
© Bannasa008
ना शौक ना ऐतबार बता ये जरूरत किसे दूं ।
संजिदा ही खड़ा रहा हु मै आईने के सामने ।
गफलत मे ही मुस्कुराया ये झूठी शान किसे दूं ।
मेने भी देखा है लोगो को भीड मे अक्सर।
मय अब लगे बद्दसर ये झूठी शराफत किसे दूं।
मिल्कियत, शान ए शोकत सब फानी हे फानी ये ।
ये झूठी ताज पोशी के झूठे खयालात किसे दूं।
© Bannasa008