...

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यूँही तो गुज़र गया ऐ वक्त एहतियात किसे दू ।
ना शौक ना ऐतबार बता ये जरूरत किसे दूं ।

संजिदा ही खड़ा रहा हु मै आईने के सामने ।
गफलत मे ही मुस्कुराया ये झूठी शान किसे दूं ।

मेने भी देखा है लोगो को भीड मे अक्सर।
मय अब लगे बद्दसर ये झूठी शराफत किसे दूं।

मिल्कियत, शान ए शोकत सब फानी हे फानी ये ।
ये झूठी ताज पोशी के झूठे खयालात किसे दूं।

© Bannasa008