...

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तन्हाई,,,,,,
एक बार फिर ये तन्हाई
मुझे भाती है....
यूं कर के लोगों से दूर खुद को
सुकून की राह नजर आती है......
कई रातें गुजारी हैं
सिसकते सिसकते मैंने
अब इन आंखों को भी
आंसुओं से जुदाई नहीं
भाती है....
अब रूठ गई हूं ज़माने से
खुद को मनाने की खातिर
अब जिंदगी की समझ
मुझको आई है!!