...

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चादर
कल से अपना रिश्ता नाता तोड़ के बैठी हूँ
पलकों में बरसों की बूँदें जोड़ के बैठी हूँ।
साँझ सवेरे करती थी सिंगार कभी
सच दिखलाता नाजुक शीशा तोड़ के बैठी हूँ...