...

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काम का बचा कुछ नही
फुर्सत में झांक कर देखा मकान-ए-दिल में
मिला कुछ भी नही सलीखे से
बिखरी पड़ी है असूलों की स्याई
जर्द जर्द है सपनो की क़िताब
उलझे पड़े हैं ख्वाब कई सारे
टूटे पड़े हैं जुनून के बर्तन सारे
कहीं सीलन है विचारों में
कहीं कोंपले उग रही हैं रिश्तों की दरारों में
रंग छूट रहा बचपन का
टपक रही छत जवानी की
याद से भी याद नही कहानी नानी की
चलो चले काम पर मकान-ए-दिल में
काम का कुछ बचा ही नही......
© मनोज कुमार