काम का बचा कुछ नही
फुर्सत में झांक कर देखा मकान-ए-दिल में
मिला कुछ भी नही सलीखे से
बिखरी पड़ी है असूलों की स्याई
जर्द जर्द है सपनो की क़िताब
उलझे पड़े हैं ख्वाब कई सारे
टूटे...
मिला कुछ भी नही सलीखे से
बिखरी पड़ी है असूलों की स्याई
जर्द जर्द है सपनो की क़िताब
उलझे पड़े हैं ख्वाब कई सारे
टूटे...