चांद को पत्र, चांद के नाम
गिरत उठत इस दुनियां में,
जो घटता बढ़ता वो तू चांद है ।।
नीले नीले अम्बर पर तेरा होना,
मानो कान्हा के नथ पर चमकता सोना।।
रूप तेरा क्या कहना,
लगे तू नीले कान्हा की गहना ।।
सब ढूंढे अपने प्रियतम को तुझ में,
में ढूंढू अपने चांद (कृष्णचंद्र) को रे ।।
तुझको मिलें जो मिलनेको आ कर महादेवजी से,
उनको मेरी स्मबाद देदियो रे...।।
कहना मन भावन को,
कुछ ख़ास नहीं बस बात यूंही करना है...
मिले फुरसत हमसे जो हमसे मिलने आ जाएं ।।
© Shyam_Kripaki_Pyasi
जो घटता बढ़ता वो तू चांद है ।।
नीले नीले अम्बर पर तेरा होना,
मानो कान्हा के नथ पर चमकता सोना।।
रूप तेरा क्या कहना,
लगे तू नीले कान्हा की गहना ।।
सब ढूंढे अपने प्रियतम को तुझ में,
में ढूंढू अपने चांद (कृष्णचंद्र) को रे ।।
तुझको मिलें जो मिलनेको आ कर महादेवजी से,
उनको मेरी स्मबाद देदियो रे...।।
कहना मन भावन को,
कुछ ख़ास नहीं बस बात यूंही करना है...
मिले फुरसत हमसे जो हमसे मिलने आ जाएं ।।
© Shyam_Kripaki_Pyasi