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अनोखे रिश्ते
खर्च कर दिया ख़ुद को
एक अनोखे रिश्तों में
ऋण चुका रहा जैसे
छोटे-छोटे किश्तों में
मात-पिता का अनदेखा
हुआ भटक गया रस्ते में
नियत पहचाने में भूल हुई
इसलिए बिक गया सस्ते में
दो चार उसके मीठे बोल
कान में दिया उसने गोल
विश्वास मेरे सर चढ़ गया
आँख बंद आगे बढ़ गया
अब मेरी व्यथा का मोल नहीं
जज़्बात था जसके लिए
वो छोड़ चली गई दूर कहीं
© sushant kushwaha
एक अनोखे रिश्तों में
ऋण चुका रहा जैसे
छोटे-छोटे किश्तों में
मात-पिता का अनदेखा
हुआ भटक गया रस्ते में
नियत पहचाने में भूल हुई
इसलिए बिक गया सस्ते में
दो चार उसके मीठे बोल
कान में दिया उसने गोल
विश्वास मेरे सर चढ़ गया
आँख बंद आगे बढ़ गया
अब मेरी व्यथा का मोल नहीं
जज़्बात था जसके लिए
वो छोड़ चली गई दूर कहीं
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