अपना दुख, अपनी मजबूरी
#मजबूरी
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
चाहे कितनी भी बुरी हो क़िस्मत
हम हारते नहीं,
भूख बस हमें हरा दे तो बात और है ।।
वरना गिर के भी उठते हैं,
दुसरो को उठाते हैं।।
गिरा कोई और भी दे तो दिल बड़ा कर माफ़ी
ख़ुद हीं मांग लेते हैं।।
हम और हमारा भवीष्य ,
एक उम्मीद पर कायम है ।।
तुम क्या जानो हम पर क्या बीतती है ,
जब हमारा बच्चा खिलौने से खेलने की उम्र में खिलौना बेचते हैं।।
© Mãìråv
झूठ नहीं मजबूरी है,
तुम जानों क्या क्या ज़रूरी है;
नंगे बदन की भी अपनी धुरी है,
चाहे कितनी भी बुरी हो क़िस्मत
हम हारते नहीं,
भूख बस हमें हरा दे तो बात और है ।।
वरना गिर के भी उठते हैं,
दुसरो को उठाते हैं।।
गिरा कोई और भी दे तो दिल बड़ा कर माफ़ी
ख़ुद हीं मांग लेते हैं।।
हम और हमारा भवीष्य ,
एक उम्मीद पर कायम है ।।
तुम क्या जानो हम पर क्या बीतती है ,
जब हमारा बच्चा खिलौने से खेलने की उम्र में खिलौना बेचते हैं।।
© Mãìråv