बचपन....
वो ख्वाबों का गाँव
वो बरगद का छाँव
कभी न थकते थे पाँव
मेरे बचपन का घराँव
वो मौसम ही मेरे लिए उपर्युक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त थे !!
छुक-छुक की रेल
वो छुपे-छुपाई का खेल
उस वक़्त था सबमें ही मेल
मेरे मन में ना थे इतना झमेल
सारी दुख-विपदाओं से मुक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त...
वो बरगद का छाँव
कभी न थकते थे पाँव
मेरे बचपन का घराँव
वो मौसम ही मेरे लिए उपर्युक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त थे !!
छुक-छुक की रेल
वो छुपे-छुपाई का खेल
उस वक़्त था सबमें ही मेल
मेरे मन में ना थे इतना झमेल
सारी दुख-विपदाओं से मुक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त...