...

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बचपन....
वो ख्वाबों का गाँव
वो बरगद का छाँव
कभी न थकते थे पाँव
मेरे बचपन का घराँव

वो मौसम ही मेरे लिए उपर्युक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त भी क्या वक़्त थे !!


छुक-छुक की रेल
वो छुपे-छुपाई का खेल
उस वक़्त था सबमें ही मेल
मेरे मन में ना थे इतना झमेल

सारी दुख-विपदाओं से मुक्त थे !!
सुहाने से वो वक़्त...