...

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मन और सृष्टि
पेड़ से पत्ता
कोई मुक्त हुआ
जैसे
मैं ही मुक्त हो गया
ये कैसा मन है
भरता ही नहीं
रिक्त है सब रिक्त
चलो सरासर सृष्टि का
सोपान करे मन तृप्त करे
विषयों का व्यापार
या इंद्रियों का व्यापार
क्या...