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"परिवार"
मैं इमारतें बनाता चला गया
पाये छूटते चले गये
मैं जोड़ता रहा ईंच-ईंच
वो टूटते चले गये
मुश्किलों की परवाह कभी न की मैनें
वो हौसले मगर मुड़ते चले गये
हाँ रफ्तार धीमी थी मगर जुनून था
हासिल हो मुकम्मल जुझते रहे हरपल
जिस दिन के लिये कोशिशें हर की
वो सपने चमकने वाले धुँधले से हो गये
कुछ बात रही होगी उनके जेहन में
या मेरे पसीने में हीं कशिश कम रही होगी।
© guddu srivastava
पाये छूटते चले गये
मैं जोड़ता रहा ईंच-ईंच
वो टूटते चले गये
मुश्किलों की परवाह कभी न की मैनें
वो हौसले मगर मुड़ते चले गये
हाँ रफ्तार धीमी थी मगर जुनून था
हासिल हो मुकम्मल जुझते रहे हरपल
जिस दिन के लिये कोशिशें हर की
वो सपने चमकने वाले धुँधले से हो गये
कुछ बात रही होगी उनके जेहन में
या मेरे पसीने में हीं कशिश कम रही होगी।
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