...

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कुछ यूँ होगा..।।
ये मेरे दिल-ए-ज़िन्दगी का इक और हादसा होगा..,
वो संग-दिल, फिर से मेरी साँसों का हिस्सा होगा ।।

टूटी शाखों से गिरे बिखरे पत्तों की रवानी का क्या..,
वो बेरहम मौसम है जो उनके दर्द का किस्सा होगा ।।

अब मकानों की दीवारें भी चीखती हैं बेतहाशा सी..,
शायद किसी के जाने का ग़म इनको भी हुआ होगा ।।

एक चेहरे पे चेहरा लगाये फिरता है हर इन्सान यहाँ..,
यकीं किसका करें जो रोज नया चेहरा तराशता होगा ।।

कल तक खुशियों में शनासा जो थें मेरे अपने कभी..,
बेगाने होकर मुझसे, मेरे घर का रास्ता बदला होगा ।।

दर-दर भटकता हुआ वो इन्सान अब उदास सा है..,
लगता है उसे भी खुद के फ़ना होने का भरोसा होगा ।।

'अल्फाज' तेरी आँखें आज इतनी नम सी क्यों हुयी हैं..,
तेरा भी मुकद्दर शायद तेरे अश्कों के जैसे रूठ गया होगा ।।



©AK_Alfaaz.

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