...

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एक घर...........
घर हैं एक मेरा
घर से दूर, बनाया
हैं मैंने, मेरा एक घर ।।
सजाया हैं मैंने
इसे,नयें सपनोंसे,
ढाला हैं मैंने इसे,
नये ताल और
अजनबी सुरोंमें
घरसे दूर हैं, एक
मेरा घर, ' सुमधुर ' ।।
क्या वो भी था
घर ,लगता जो
बेसुर मगर ,
सपने अपने,
बिखरे बिखरे
प्यार अपना जहाँ,
चकनाचूर ....घर,
बन गया हैं जो
अब खंडहर ।।
आओ तुम, आभी जाओ
गीत नये, प्यार नया
घर बसायें एक सुनहरा
बनायें, सजायें इसे
हैं घर, जो घरसें दूर
अपना घर, अपना घर ।।

©सुबोध जोशी
05-08-2020