हर रोज़..
तुम्हारी गली हर रोज आते है
मग़र तुम नज़र नही आते हो,
छुप छुप के सड़कों पर से देखता
कभी खुली खिड़की को...
मग़र तुम नज़र नही आते हो,
छुप छुप के सड़कों पर से देखता
कभी खुली खिड़की को...