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टुटे -बिखरे
#टुटे -बिखरे

जीने चले थे भीड़ में, ले हम भी टुटे बिखरें पल
आ चुके है जिंदगी के,ढ़ाल ‌के उस मोड़ पर
रात दिन कैसे काटे यह जाने मेरे शिल्पकार
शत्रु सोचे आ जाए हम, भीख मांगने रोड़ पर

जिंदगी भर जख्म दिए, हमने दिनमान समझ खुब पीये
छीने नहीं उपहार किसी के, फिर भी आंखों के आंसु दिए ,
लाये मेरे जनक दो आने अपने फीके हाथों से
लगा दूर से कपट के चश्मे, अरमां कुचलने के जत्न किये।