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Sitara...!?💕
बेहद हसीन थी वो रात
जिसमें चांद तारे की गुफ्तगू में
बादल आडे आ रहा था
तारे की बेताबी इतनी जानते हुए की
कुछ गुफ्तगू अधुरी ही रह जाती है
फिर भी तारा
चांद की चाह में अपने आप को
चांद के इर्दगिर्द बिखेरे जा रहा था
एक साथ नहीं एक साये की
आस रखे जा रहा था
सितारा अस्तित्वहीन हो कर भी चमक रहा था
अपने प्रेम को किसी ओर के नाम पे महशूर होते देख रहा था ...
© HeerWrites
जिसमें चांद तारे की गुफ्तगू में
बादल आडे आ रहा था
तारे की बेताबी इतनी जानते हुए की
कुछ गुफ्तगू अधुरी ही रह जाती है
फिर भी तारा
चांद की चाह में अपने आप को
चांद के इर्दगिर्द बिखेरे जा रहा था
एक साथ नहीं एक साये की
आस रखे जा रहा था
सितारा अस्तित्वहीन हो कर भी चमक रहा था
अपने प्रेम को किसी ओर के नाम पे महशूर होते देख रहा था ...
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