वजूद
पुराना वजूद मिटाना पड़ता है
ताज महल बन ने से पेहले
संगमरमर को
हथौडे की मार से
गुज़रना पड़ता है
बहोत दरारे रेह जाती है
खुद को तराशने में फिर भी
उमीद, आँसु, मेहनत
गम से गुज़र के
कतरा कतरा पहचान
बनानी पड़ती है
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ताज महल बन ने से पेहले
संगमरमर को
हथौडे की मार से
गुज़रना पड़ता है
बहोत दरारे रेह जाती है
खुद को तराशने में फिर भी
उमीद, आँसु, मेहनत
गम से गुज़र के
कतरा कतरा पहचान
बनानी पड़ती है
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