safar ki had
सफ़र की हद है वहाँ तक के कुछ निशान रहे
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है
तुम उस को दोस्त...
चले चलो के जहाँ तक ये आसमान रहे
ये क्या उठाये क़दम और आ गई मन्ज़िल
मज़ा तो जब है के पैरों में कुछ थकान रहे
वो शख़्स मुझ को कोई जालसाज़ लगता है
तुम उस को दोस्त...