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ये नाम राधा
सोचते ही मन में त्याग समर्पण प्रेम का पर्याय लगता है ये नाम राधा ...
ना में कृश्न की दीवानी ना में इसकी भक्त
बस परीकथा के जैसे बचपन से कहानियां सुनी थी प्रेम की ...
हर बार सोचती कान्हा की इतनी रानियाँ थी तो एक और हो जाती क्यों राधा से ब्याह नहीं रचाया ..
क्या राधा ने ज़िद नही की होगी ? कि कान्हा ने मना किया होगा ??
क्या होगा वो आखिरी संवाद ,वो पीड़ा ,वो साथ न रहने का फैसला ,,, टूटे होगे ना दोनों..
कि, ऐसे ही राधा ने स्वीकार कर लिया होगा अपने...