...

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इजाज़त,,
आओ कुछ सुनाऊं
कुछ अफसाने पुराने गुनगुनाऊं
दो इजाज़त जो अगर तुम
तेरे हर जख्म का मरहम मैं बन जाऊं

कुछ किस्से मैं अपने बताऊं
कुछ तेरी भी याद दिलाऊं
दो इजाज़त जो अगर तुम
तेरे होठों की मुस्कान मैं बन जाऊं

चल बैठें छत के उस मुहाने पे
जहां कभी हम मिले थे
मौसम था वो पतझड़ का,
फिर भी दो फूल खिले थे

आज भी वो हवा वही है
वो जगह, वो रास्ता, और हम वहीं हैं
सूरज की किरणें भी मुस्कुरा रही हैं
जैसे फिर से तुम्हें मुझसे मिलवा रही हैं

आओ एक दफा फिर उस जगह
तुम्हें तुमसे मिलवाऊं
दो इजाज़त जो अगर तुम
मैं आज तेरे लिए सज जाऊं

हर मोड़ पर बस तुम्हारे कदमों के निशान हों
हर साँस...