सारांश एक नग्न वैश्या कागज की भाग५(समाज)
अपने ऊपर हुआ प्रत्येक प्रहार को,
मेरे जिस्म पर आई हर खराच को,
अपनी कोई स्वयं की पहचान ना होने को,
उसने मुस्कुराते हुए बोला,
हां यह वास्तविक -
"पांव में दाबे हुए छाले "
जो आगे कहती हां वही छाले,
जिनका घाव बहुत घोर और गहरा है,
क्योंकि हां ये वही जो बेनाम है,
जरूर हो मगर!
मगर नाजायज़ नहीं!
और शायद क्यों मालूम होता!!
क्योंकि शायद नाजायज और बेनाम होना -...
मेरे जिस्म पर आई हर खराच को,
अपनी कोई स्वयं की पहचान ना होने को,
उसने मुस्कुराते हुए बोला,
हां यह वास्तविक -
"पांव में दाबे हुए छाले "
जो आगे कहती हां वही छाले,
जिनका घाव बहुत घोर और गहरा है,
क्योंकि हां ये वही जो बेनाम है,
जरूर हो मगर!
मगर नाजायज़ नहीं!
और शायद क्यों मालूम होता!!
क्योंकि शायद नाजायज और बेनाम होना -...