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आसा नही है नारी का सफर
#EmotionalDuality
आसा नही है एक नारी के लिए,
मायके से ससुराल तक का,
बेटी से बहू बन जाने तक का ये सफर,
न जाने कितने सारे मन से चला करती हैं
सारी उलझने सुलझा कर ,
खुद को उस घर में भुला देती है
जन्मदाता से दूर दूसरी अपनी एक दुनिया
बना जाती है
कभी इन सबमें उसके अंदर द्वंद भी
छिड़ जाता है
आखिर में अपने भीतर के द्वंद को
विराम दे खुशियां बिखेर ही आती है
अपने दोनों घर आंगन में
जो आसा नही है नारी के लिए ।



© verma anita