...

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क्या पता है।
क्या पता है , तुम्हे ,
दिल में कितने गम लिए चलती हूं ,
किसीको भनक ना लगी ,
अंदर ही अंदर जलती हूं,
अपनी हर दर्द को ,
अपने ही अंदर पलती हूं ,
जो जैसा चाहता है मुझसे ,
वैसे रूप में ढलती हूं ,
कोई अंदाजा न लगा जाए गम की ,
बाहर से हमेशा खिलती हूं ,
और कितना मजबूत करलूं खुदको ,
अकेले में ही पिघलती हूं ,