...

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धीर धरो निराशा न तुम पर शोभती है।
हां है विपत्ति बहुत काल सघन,
थका हुआ टूटा हुआ है तन,
आशंकाओं के बादलों से घबराया हुआ है मन,
किंतु हे कर्मबली अधैर्य से कब विप्पती टलती है,
केवल विवेक मरता है, विपपति बलि होती है।
सो धीर धरो हे वीर पुरुष,
निराशा न तुम पर शोभती है।
विप्पति काल में ही वीरों के शौर्य की,
की परीक्षा होती है।

नही समय है ये आशंकाओं के माया जाल में खोने का,
निराशा के जाल में फंसकर भाग्य को कोसने का रोने का,
समय है ये कुछ करने का,
विपत्तियों से लड़ने का,
समस्या से मन को...