...

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ख़ामोशी की सदा
सबने वो भी सुना जो मैंने कहा ही नहीं
वहम वो रोग जिसकी कोई दवा ही नहीं

गलतफहमियां इतनी बढ़ने लगीं दर्मियां
कभी सुनी मेरी ख़ामोशी की सदा ही नहीं

मैंने चाहा था सब को साथ लेकर चलना
रास्ता दुश्वार था साथ कोई चला ही नहीं

पीर पराई उसके लिए समझना है मुश्किल
जीवन में जिसने कोई दुख सहा ही नहीं

मैंने तर्क़* किया जबसे लोगों की बातें सुनना
सब अपने लगने लगे दुश्मन कोई रहा ही नहीं

*तर्क़ = छोड़ना
© अमरीश अग्रवाल "मासूम"